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Administration Posing Danger To Ganges

Updated on 19 December, 2011
गंगा का खनन पुनः जारी - राष्ट्रीय नदी गंगा को काटने-खोदने से रोकने के लिए १२ बार आमरण अनशन किए गए। - हरिद्वार मे स्वामी निगमानंद ने २००८ में ७३ दिनों का अनशन किया था। - इसी वर्ष जून को शरीर त्यागने के पूर्व उनका अनशन ११४ दिनों तक चला था। - हालांकि इस लड़ाई के बाद ज्यादातर स्टोन क्रशर बंद दो गए, लेकिन परी तरह से नहीं। - पुनः नए आदेश और सरकार के समर्थन से धीरे-धीरे खनन तेज हो रहा है। इसके विरूद्ध स्व. निगमानंद के गुरू मातृ सदन के प्रमुख स्वामी - शिवानंद ने अनशन आरंभ कर दिया है। - प्रश्न है कि क्या शिवानंद भी निगमानंद की तरह गंगा के बचाने के लिए अपनी बलि दे देंगे?----------------------    गंगा को सरकार ने भले राष्ट्रीय नदी घोषित कर दीया, लेकिन अब तक उसके साथ पूरे देश की सरकारें कैसा आचरण करें, इसकी कोई एकरूप नीति नहीं बन पाई है। इसका प्रमाण उत्तराखंड विशेषकर हरिद्वार में गंगा के अंदर खनन को लेकर सरकार का रवैया है। गंगा के शनन मुद्तै पर संत, आंदोलनकारी एवं राज्य सरकार पुनः एक दूसरे क् आमने-सामने है। विडम्बना देखिए कि संत एवं आंदोलनकारी जहां तर्क दे रहे हैं कि गंगा मैया की कोख से खनिजों का दोहन करने से नदी का मुल अस्तित्व नष्ट हो जाएगा वहीं सरकार का कहना है कि अगर खनन नहीं होगा तो गंगा के बहाव प विपरीत असर होगा। सवाल है कि सही कौन है?    ध्यान रखने की बात है कि स्वामी निगमानंद ने गंगा में खनन रोकने की मांग को लेकर ही आमरण अनशन किया था और इसी निमित्त उनकी मृत्यु हो गयी। ऩिगमानंद की मृत्यु के बाद से इसे लेकर लगातार आंदोलन चल रहा है और पूर्व की भांति हरिद्वार का मातृसदन इसका केन्द्र बिन्दु है। लंबे आंदोलन  बाद सरकार ने कुंभ छेत्र मे खनन रोकने का आदेश दिया था, लेकिन २००८ मे एक प्रशासनिक निर्णय  के अनुसार कुँभ छेत्र को ही कम कर दिया गया एवं इसके अनुसार पूर्व मे कुंभ के अंतर्गत आने वाले अजीतपुर व  मिस्सरपुर को इससे अलग कर दिया गया फलतः इन छेत्रों में खनन फिर से शुरू हो गई।
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