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Sansad Pal Wants No Lokpal

Updated on 01 January, 2012
सीबीआई की स्वायत्ता - कांग्रेस का सीबीआई के स्वायत्ता को लेकर जो रूख है वह हैरान कर देने वाला है। वह किसी भी परिस्थिति में इस सर्वोच्च जाँच एजेंसी को केंद्रीय सत्ता के नियंत्रण से बाहर नहीं जाने देना चाहती हैं। जबकि विपक्षी दलों की यह आपत्ति सही है की सीबीआई का केंद्र सरकार के अधीन होने से लोकपाल निष्पक्ष जांच नहीं कर सकती। सीबीआई लोकपाल के दायरे में हो या नहीं यह बहस तो तर्कपूर्ण हो सकता है लेकिन सत्तारूढ.कांग्रेस सरकार की सीबीआई को अपने अधीन रखने की हठधर्मिता उसके दागदार दामन  और भय को दर्शाता है, वर्ना देश की सर्वोच्च जाँच एजेंसी सरकार के अधीन काम क्यों करे? जबकि संसद के अदर से पक्ष-विपक्ष दोनों ने यह स्वीकार किया है कि सीबीआई का दुरूपयोग सत्तासीन दलों ने किया है। सीबीआई के पूर्व निदेशक जोगिंदर सिंह ने आन रिकार्ड स्वीकार किया था कि केंद्र सरकारे जाँच को प्रभावित करती रहीं हैं। कांग्रेस जहां सीबीआई को लोकपाल के दायरे में रखने के विरोध मे है वहीं वह सीबीआई को स्वात्तयता देने की बात तो करती है पर उसके लिए कतई तैयार नहीं है।  अभी हाल ही में कई पत्रिकाओं में यह बात आयी कि एक सांसद को नामांकन से लेकर चुनाव लडने और संसद तक पहुंचने में लगभग 10 करोड़ रूपये खर्च करने पड़ते है। ऐसे में संप्रग.2 के मात्र ढाई साल ही हुए हैं। इसलिए कांग्रेस किसी भी स्थिति में ऐसे कानून को हरी झंडी नही देना चाहती जहां जनता और जांच एजेंसीयो के हाथ उसके सांसदों और मंत्रियो के गिरेबान तक पहुँचे। उन स्थितयों में मध्यावधि चुनाव आवशयक हो जाएगा और कांग्रेस सत्ता से बाहर। अभी करीब 150 लोकसभा सांसदो पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप है जिनमे ज्यादातर सरकार और सहयोगी दलों के सदस्य ही हैं। ऐसे मे सत्तापक्ष का सीबीआई को अपने नियंत्रण से बाहर जाने देना उसके लिए राजनीतिक आत्महत्या ही कही जायेगी। इसकी पुष्टि सभापटल पर कई सांसदो के बयान से भी लगाया जा सकता है। कई ने कहा कि वर्तमान व्यवस्था ही ठीक है तो एक सांसद ने तो बहस के दौरान यहां तक कह दिया कि क्या हम अपने ही गले में फंदा लगा ले। लोकपाल का चयन और निष्कासन – अण्णा हजारे और देश के लाखों लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ व्यापक सुधार की जो परिकल्पना कर रहें है उसमें लोकपाल के चयन और निष्कासन के अधिकार को लेकर जहां केंद्रीय सत्ता टीम अण्णा के सुझाये प्रस्तावों से खफा दिखती हैं वहीं वह इस मामले में सरकार की सर्वोच्चता चाहती है जो कि इस पुरे ऑदोलन की आत्मा है। इस प्रकार एक अस्वाभिक प्रस्ताव रखकर कांग्रेस देश को बहस और विरोधाभासों में उलझाकर समय काटना चाहती है। साथ ही कांग्रेस जानती है कि बीतते समय के साथ ऑदोलन के समर्थकों मे कमी होंगी और ऑदोलन की धार कुँद होगी। टीम अण्णा भी इस बात को समझती है और इसलिए उसके कुछ कदम जल्दबाजी मे लिए गए दिखते है। ऐसे में देश कि जनता को संयम से काम लेना होगा और भ्रष्टाचार के खिलाफ इस मुहिम के साथ लंबे समय तक साथ रहने की जिद रखनी होगी।
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